केदारनाथ सिंह की कविता
सब चेहरों पर सन्नाटा
हर दिल में गड़ता कांटा
हर घर में गीला आटा
यह क्यों होता है...?
जीने की जो कोशिश है
जीने में यह जो विष है
सांसों में भरी कशिश है
इसका क्या करिए...?
कुछ लोग खेत बोते हें
कुछ चट्टानें ढोते हें
कुछ लोग सिर्फ होते हें
इसका क्या मतलब है...?
मेरा पथराया कंधा
जो है सदियों से अंधा
जो खोज चुका हर धंधा
क्यों चुप रहता है...?
यह अग्निकिरीटी मस्तक
जो है मेरे कन्धों पर
यह ज़िंदा भारी पत्थर
इसका क्या होगा...?